जो डर गया, समझो मर गया’ के गब्बर, जिन्होंने कॉमेडी में भी जीता दिल

Chandu
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मुंबई। हिंदी सिनेमा के इतिहास में जब भी यादगार किरदारों की बात होती है, तो ‘गब्बर सिंह’ का नाम सबसे पहले जुबां पर आता है। अमजद खान ने इस किरदार से न सिर्फ दर्शकों के दिलों में खौफ पैदा किया, बल्कि खुद को बॉलीवुड के सबसे दमदार कलाकारों में शामिल कर लिया। लेकिन अमजद खान सिर्फ एक खलनायक नहीं थे — वे एक संपूर्ण अभिनेता थे, जिन्होंने कॉमेडी और पॉजिटिव रोल में भी दर्शकों को खूब हंसाया और भावनात्मक किया।

फिल्मी परिवार से शुरुआत

12 नवंबर 1940 को ब्रिटिश भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे अमजद खान का परिवार फिल्मी पृष्ठभूमि से था। उनके पिता जयंत भी एक जाने-माने अभिनेता थे। बचपन से ही अमजद को अभिनय का शौक था।
सिर्फ 11 साल की उम्र में उन्होंने ‘नाजनीन’ फिल्म में बाल कलाकार के रूप में काम किया। फिर ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ (1957) में उन्होंने 17 साल की उम्र में अभिनय किया — यही उनके सिने करियर की पहली सीढ़ी बनी।

 ‘शोले’ ने बदली जिंदगी

1975 में आई ‘शोले’ ने अमजद खान के जीवन की दिशा ही बदल दी। “जो डर गया, समझो मर गया” जैसी डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें अमर कर दिया। उनकी भारी आवाज़, आंखों की चमक और संवाद-अंदाज़ ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया।
इसके बाद उन्होंने ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘सत्ते पे सत्ता’, और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी फिल्मों में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया।

 कॉमेडी और पॉजिटिव किरदारों में भी छाए

विलेन की छवि के बावजूद अमजद खान ने कई फिल्मों में दर्शकों को मुस्कुराया भी। ‘कुर्बानी’ में उनका हल्का-फुल्का अंदाज़ दर्शकों को खूब भाया। वहीं ‘लव स्टोरी’, ‘उत्सव’ और ‘याराना’ जैसी फिल्मों में उन्होंने पॉजिटिव रोल निभाकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का सबूत दिया।
‘याराना’ में अमिताभ बच्चन के साथ उनकी दोस्ती आज भी दर्शकों को याद है। फिल्म के गाने – ‘छूकर मेरे मन को’, ‘भोले ओ भोले’, ‘तेरे जैसा यार कहां’ – दोस्ती की मिसाल बन गए।

सम्मान और संघर्ष

अमजद खान को उनकी उत्कृष्ट अदाकारी के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक ऐसी छाप छोड़ी जो आज भी कायम है।
हालांकि उनकी जिंदगी चुनौतियों से भी भरी रही। 1986 में गोवा में हुए एक गंभीर सड़क हादसे में उनकी कई पसलियां टूट गईं। इसके बाद स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ीं, लेकिन उन्होंने कभी अभिनय से नाता नहीं तोड़ा।

अंतिम पड़ाव


27 जुलाई 1992 को अमजद खान ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन ‘गब्बर सिंह’ का वो डर और करिश्मा आज भी हर सिनेप्रेमी के दिल में जिंदा है।
सच कहा गया है —

“खलनायक तो बहुत आए, पर गब्बर सिर्फ एक था।”

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